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सुबह -सुबह जल मे एक दर्शय मैने देखा………………………..
दर्शय देख कर चंचल हो गई , आज मन की रेखा…………………………….
देखा मैने की जल मे जग अलग एक रहता ……………………………
विपरीत सब कायदे वहा के पर लगे अपने जैसा……………………
.सोच ही रही थी कि चंचलता मुड कर फिर चली आई ………………..
काश अपने जग के कुछ कायदे हम उल्ट पाते भाई……………………..
हार कर हम ना टिस पालते , उल्टा प्यार लुटाते……………………..
विफलता का रोना ना रोते सिखने की खुशी मनाते ………………………
जित कर हम ना हुकुम चलाते सबको गले लगाते………………………
बेटी पैदा होने पर ना मुॅह छोटा बनाते………………….
लक्ष्मी का रूप सोच कर हम फिर दुगनी खुशिया मनाते………………………
घर के बाहर झोपडा देखकर उसको ना हटवाते……………………
हम भी कुछ सहायता देकर छत उसको दिलवाते………………………..
पडोसी भुखा जानकर हम ना चैन से फिर सौ पाते……………………….
अपने घर पर उसे बुलाकर मिलकर सब फिर खाते………………………..
तंगहाली के कारण कोई मौत के मुॅह ना जाता…………………..
बिमार व्यक्ति का पता पुछकर डाॅ खुद घर आता………………….
नेता अपनी पैठ देखकर खुद की जैब ना भरता……………………….
देश की जरूरत जानकर अपना खुल्ला करता घर हाॅ ……………………….
पुलिस वाले मौका देखकर रिश्वत ना ले पाते…………………………..
उल्टा चाय पानी के पैसे जरूरतमंदो केा दे आते……………………………
गर्भ मे लडकी जानकर हम ना भ्रूण हत्या कर पाते………………………………
ऐसा सोचने भर से ही मुॅह पर लग जाते ताले………………………………
वृद्धाश्रम का नाम हमारे कानो मे ना पडता…………………………….
वृद्ध जनो के संग मे रहता मिलकर पुरा कुनबा…………………………..
अफसरो को भ्रष्टाचार का बुरा रोग ना लगता…………………………
ईमानदारी के वंशज पर कोई प्रश्न उठा ना सकता…………………………
बहु को साॅस की सुरत लगती माता से भी प्यारी……………………………….
सासु माॅ खुश होकर बोले बहु मेरी राजदुलारी…………………………..
गंदी नजर वालो की आॅखे खुद ब खुद फुट जाती …………………………..
इज्जत लुटने वालो पर प्रकृति कोप बरसाती…………………
हे ईश्वर मेरी कल्पना काश सच हो जाती …………………………..
गम का कही पर नाम ना होता खुशी हर मुख पर छाती।……………………..
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